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CG BREAKING:शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में शामिल हुए वोरा

 

देश कभी नहीं भूल पाएगा अमर शहीद हेमू कालाणी का बलिदान

दुर्ग। महान क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त, शहीद हेमू कालाणी के प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अरुण वोरा शामिल हुए। वोरा ने शहीद हेमू कालाणी को नमन करते हुए आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को याद किया। वोरा ने कहा कि शहीद हेमू कालाणी की देशभक्ति का जज्बा और भारत की स्वतंत्रता के लिए दीवानगी भारतवासी कभी नहीं भूल सकते। शहीद हेमू कालाणी की शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता। प्रतिमा अनावरण के अवसर पर सिंधी समाज के गणमान्य नागरिक डॉ. राजपाल, एमआईसी मेंबर अब्दुल गनी, भोला महोबिया, प्रकाश गीते सहित अन्य गणमान्य नागरिक मौजूद थे। भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को बाम्बे प्रेसीडेंट के सिंध डिवीजन के सुक्कूर में एक सिंधी जैन परिवार में हुआ था। सुक्कूर अब पाकिस्तान में है। वे देश के लिए शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे। उनके 20 वें जन्मदिन से दो महीने पहले केवल 19 वर्ष की आयु में उन्हे अंग्रेजी हुकूमत के आदेश पर फांसी दी गई थी। हेमू कालाणी को सिंध का भगत सिंह भी कहा जाता है। हेमू बचपन से साहसी थे और विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। हेमू जब मात्र 7 वर्ष के थे, तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजो की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। 1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने अंग्रेज भारत छोड़ो नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दियाा था। हेमू समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए लोगों से अनुरोध किया करते थे। अत्यचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों और उनके वाहनों को जलाने में हेमू कालाणी सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे। अंग्रेजो की एक ट्रेन जिसमें क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार और अंग्रेजी अफसरों का खूखार दस्ता था, उसे हेमू सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का प्रयास कर रहे थे। पुलिस ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में हेमू को फांसी की सजा सुनाई। हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने पर फांसी की सजा न देने का प्रलोभन दिया गया। लेकिने उन्होने किसी का नाम नही बताया। 21 जनवरी 1943 को उन्हे फांसी की सजा दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए वे फांसी के फंदे पर झूल गए।

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