भिलाई के आदित्य नें लिखी दीपावली पर छत्तीसगढ़िया भाषा में विषेश लेख…..”देवारी अउ जिमीकांदा के साग”…
शिवनाथ संवाद।। वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ म जिमीकांदा के साग खाए बर बारों महीना मिल जाथे, फेर देवरिहा सुरहुत्ती के बिहान दिन, जे दिन गरुवा मनला खिचरी खवाए जाथे वो दिन अवस करके खाए बर मिल जाथे. ए परंपरा लगभग सबो घर देखे बर मिल जाथे. हमन मैदानी भाग म एला अन्नकूट के रूप म ‘नवा खाई’ घलो कहिथन.
घर के सियान ए दिन चुरे जिमीकांदा के साग अउ खिचरी ल घर के देवता म चढ़ाए के बाद गरुवा मनला खवाथे, तहाँ ले खुद घलो खाथे. लइका राहन त हमर बबा हमू मनला खाए बर देवय. पहिली तो छिनमिनावन. काला-काला खवाथे कहिके बिदके असन करन, तभो ले खाएच बर लागय, काबर ते ए दिन घर के जम्मो सदस्य खातिर जिमीकांदा के साग चुरे राहय. संग म दूसर साग घलो चुरे राहय, फेर जिमीकांदा ल खाना अनिवार्य राहय.
आज जब बड़े बाढ़ेन अउ जिमीकांदा के आयुर्वेदिक महत्व ल जानेन त लागथे, के हमर पुरखा मन कतेक वैज्ञानिक सोच के रिहिन हें, जेन विविध परंपरा के नाम म कतेक महत्वपूर्ण जिनिस मनला हमर स्वास्थ्य खातिर जोड़ दिए रिहिन हें.
आज वैज्ञानिक शोध के माध्यम ले जानकारी पाएन, के जिमीकांदा म फास्फोरस के गजबे मात्रा पाए जाथे. सिरिफ ए देवारी के दिन ही एके पइत जिमीकांदा खा लेइन त हमर शरीर म कई महीना तक फास्फोरस के कमी नइ होही. ए ह बवासीर ले लेके कैंसर जइसन कतकों जबर रोग के बचाके राखथे. एमा फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी 1 अउ फोलिक एसिड होथे. संगे-संग पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम अउ कैल्शियम घलो पाए जाथे.
संगी हो आजकल बजार म हाइब्रिड वाले जिमीकांदा घलो देखे बर मिलथे, फेर एमा आयुर्वेदिक तत्व के थोर कमी होथे. अच्छा हे, के देशी किसम के ही जिमीकांदा के उपयोग करे जाय.
हमर छत्तीसगढ़ म तो वइसे घरों घर जिमीकांदा बोए अउ खाए जाथे. एकर कनसइया (पोंगा) के घलो कतकों झन साग रांध के खाथें. कतकों झन एकर ले बरी घलो बनाथें, जे ह ‘लेड़गा बरी’ के रूप म जगप्रसिद्ध हे. ए सबो ल खाना चाही. कभू-कभार मुंह खजवाए असन लागथे, फेर एकर ले डर्राना घबराना या छिनमिनाना नइ चाही.